नमो मित्रस्य वरुणस्य चक्षसे महो देवाय तद्त सपर्यंत |
दूरेद्शे देवजातय केतवे दिवस्पुत्राय सूर्याय शंसत ||
सूर्य जिस समय दिन के साथ सम्बद्ध होता है तो मित्र कहलाता है, अहरभिमानी देव मित्र है। यही सूर्य रात्रि के समय वरुण हो जाता है। इस समय सूर्य की ही एक किरण चन्द्रमा को प्रकाश पहुंचाती है। ’अहर्वै मित्रः’ रात्रिर्वरूणः’ । दिन के अभिमानी देव मित्र के तथा रात्रि के अभिमानी देव वरुण के प्रकाशक उस महान देव प्रभु के लिए नमस्कार करो उस प्रभु के लिए नतमस्तक होवो। जब उस प्रभु के प्रति नमन करना है तो सत्य व यज्ञ का उपासन करो। सत्य के पालन व यज्ञ के अनुष्ठान से प्रभु पूजन होता है। प्रभु यज्ञरूप हैं, यज्ञानुष्ठान से प्रभु पूजन होता है। प्रभु सत्यस्वरूप हैं, सत्य का पालन प्रभु का उपासन है। प्रभु यज्ञरूप हैं, यज्ञानुष्ठान से प्रभु पूजन होता है। इस प्रभु की महिमा के दर्शन के लिये सूर्य का शंसन करो, सूर्य का ज्ञान प्राप्त करो। हम सूर्य प्रकाश के द्वारा हमारे शरीर को पवित्र करने वाला तथा त्राण करने वाला है। संसार का प्रकाशक है। उस महान देव की महिमा को प्रकट करने के लिये जो प्रकट हुआ है। सुदुर स्थान पर होता हुआ भी हम सबका ध्यान करनेवाला है। इस सूर्य के वैज्ञानिक अध्ययन से प्रभु की महिमा का आभास मिलता है।